Lekhika Ranchi

Add To collaction

राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


परिवर्तन

(३)
हेतसिंह ठाकुर साहब का चचेरा भाई था। छुटपन से ही वह ठाकुर साहब का आश्रित था। ठाकुर साहब हेतसिंह पर स्नेह भी सगे भाई की ही तरह रखते थे । वह बी. ए फाइनल का विद्यार्थी था । बड़ा ही नेक और सच्चरित्र युवक था । ठाकुर साहब के इन कृत्यों से हेतसिंह को हार्दिक घृणा थी। प्रजा पर ठाकुर साहब का अत्याचार उससे सहा न जाता था। एक दिन इसी प्रकार किसी बात से नाराज़ होकर उसने घर छोड़ दिया। कहाँ गया, कुछ पता नहीं । ठाकुर साहब ने कुछ दिन तक तो उसकी खोज करवाई; फिर उन्हें इन व्यर्थ की बातों के लिए फुरसत ही कहाँ थी ? वे तो अपना जीवन सफल कर रहे थे।
एक वर्ष बाद एक दिन फिर वह गाँव में अया। और उसी दिन ठाकुर साहब के यहाँ एक कुम्हार की नव-विवाहिता सुन्दर बहू उड़ाकर लाई गई थी। कुम्हार के घर हाय-हाय मची हुई थी। उसी समय हेतसिंह उधर से निकले । उन्हें देखते ही कुम्हार ने उनसे अपना दुखड़ा रोया । हेतसिंह का क्रोध फिर ताज़ा हो गया। इसी प्रकार के एक क़िस्से से नाराज़ होकर हेतसिंह ने घर छोड़ा था ! कहाँ तो वह भाई से मिलकर पिछली नाराज़ी को दूर करने आए थे, कहाँ फिर वही किस्सा सामने आ गया । वही प्रतिहिंसा के भाव फिर से हृदय में जागृत हो उठे। घृणा और क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया । जेब में हाथ डाल कर देखा रिवाल्वर भरा हुआ रखा था । अब हेतसिंह घर पहुँचे उस समय ठाकुर साहब अपने मुसाहिवों के साथ बैठे थे। हेतसिंह को देखते ही बड़े प्रसन्न होकर बोले-
"आओ भाई हेतसिंह । कहाँ थे अभी तक ? बहुत दिनों में आए । बिना कुछ कहे-सुने ही तुम कहाँ चले गये थे ?" हेतसिंह ने ठाकुर साहब की किसी बात का उत्तर नहीं दिया । वह तो अपनी ही धुन में था, बोला-भैय्या, क्या मनका कुम्हार की बहू घर में है ? यदि है तो आप उसे वापिस पहुँचवा दीजिए।

ठाकुर साहब की त्योरियाँ चढ़ गईं क्रोध को दबाते हुए वे बोले-
हेतसिंह तुम कल के छोकरे हो। तुम्हें इन बातों में न पड़ना चाहिये। जायो, भीतर जायो, हाथ-मुंह धोकर कुछ खाओ-पियो।
हेतसिंह ने तीव्र स्वर में कहा--पर मैं क्या कहता हूँ ! मनका कुम्हार की बहू को आप वापिस पहुँचवा दीजिए ।
-"मैंने एक बार तुम्हें समझा दिया कि तुम्हें मेरे निजी मामलों में दखल देने की ज़रूरत नहीं है।"
–"फिर भी मैं पूछता हूँ कि आप उसे वापिस पहुँचायेंगे या नहीं ?"
खेतसिंह गंभीरता से बोले—मैं तुम्हारी किसी बात का उत्तर नहीं देना चाहता, मेरे सामने से चले जाओ।
हेतसिंह अब न सह सके, जेब से रिवाल्वर निकाल कर लगातार तीन फायर किए किन्तु तीनों निशाने ठीक न पड़े । ठाकुर साहब जरा ही इधर-उधर हो जाने से साफ बच गये । हेतसिंह उसी समय पकड़ा गया । हत्या करने की चेष्टा के अपराध में उसे ५ साल की सख़्त सज़ा हो गई । इसके कुछ ही दिन बाद मैनपुरी पड्यंत्र केस पर से उसके ऊपर दूसरा मामला भी चलाया गया जिसमें उसे सात साल की सजा और हो गई। ठाकुर साहब का बाल भी बांका न हो सका।

   0
0 Comments